Friday, September 5, 2008
Thursday, September 4, 2008
Thursday, August 21, 2008
अशोक का विकल्प
Wednesday, August 13, 2008
क्या सोचते और लिखते है अभिनव
अभिनव के ब्लॉग पर जाने के लिए क्लिक करें.
Saturday, August 9, 2008
तृतीय सेमेस्टर का पहला विकल्प
Friday, August 1, 2008
सत्रारंभ का स्पेशल विकल्प आ गया है
भोपाल
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रिय पत्रकारिता विश्वविद्यालय का वर्ष २००८ का सत्रारंभ आ शुरू हो रहा है । यह कार्यक्रम दो दिनों तक चलेगा । इस कार्यक्रम मैं देश की जानी पहचानी मीडिया हस्तिया युवा और भावी पत्रकातों से रूबरू होंगे । जिनमे पुण्य प्रसून बाजपेयी , राहुल देव, रेखा निगम और एन के सिंह और गिरीश उपाध्याय आदि शिरकत करेंगे ।
इससे पूर्व आज पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने स्पेशल विकल्प निकला है जिसका एक पूर्व प्रकाशन प्रति वेबी पर इस प्रकार है ।
Thursday, July 10, 2008
Master of journalism
2. Amit kumar soni
3. Anand Prasad jat
4. Ashutosh seetha
5. Brijendra kumar upadhyay
6. chinmoy biswas
7. devendra shukla
8. divya richa
9. Jitendra jatav
10. Jyotsna singh
11. Mayank chaturvedi
12. Pankaj chaurasia
13. Parikshit singh
14. Priyanka Dubey
15. Ravi sankar singh
16. Rohitashwa krisna mishra
17. Roop narayan gautam
18. Smita pandey
19. Sourabh khandelwal
20. Sushil kumar tripathi
21. Swati priya
22. Tohid ahemed qureshi
23. Abhishek sharma
24. Arun kumar mishra
Science journalism
2. Shweta pandey
3. Amar jeet pal
4. Sanjeev kumar
5. Alka shrivastava
6. Deepesh jain
7. Krishana singh
8. Rajeev kumar tiwariTripti shukla
Saturday, July 5, 2008
PGDSJ ( भोपाल कैम्पस )
1 अतहर इमाम BHO 6520 AMWATSKA
2 जावेद खान BHO 1524 भोपाल
3 रोहित प्रसाद BHO 1529 भोपाल
4 श्वेता पांडे BHO 1613 भोपाल
5 तृप्ति शुक्ल BHO 4530 लखनऊ
एम जे के टेस्ट में पास स्टुडेंट
Friday, June 6, 2008
तोड़फोड़ पत्रकारों से चरित्र पर प्रभाव पड़ेगा
Thursday, June 5, 2008
मीडिया का यूज़ 'धंधे' ज़माने में तो नहीं
पाठकों के प्रति समर्पित होने से सार्थक होंगी बहसें
गांधीजी के हिंद स्वराज को मध्यम वर्ग ने नहीं स्वीकारा
जाने-माने विचारक और लेखक प्रभाष जोशी को कौन नहीं जनता है जिनका जन्म गाँधी की जन्मभूमि गुजरात में हुआ। उन्होंने कुछ समय भोपाल में भी बिताया है उन्होंने यहाँ उन्नीस सौ छियासठ के बाद दो साल तक यहीं भोपाल की पत्रकारिता से जुड़े रहे है आप आजकल गांधीजी के हिंद स्वराज की परिकल्पा के न होने के कारणों को ढूंढ रहे है यानि कि हिंद स्वराज क्यों नहीं हुआ इस पर कार्य कर रहे है। गाँधी जी ने उन्न्सिस नौ से लेकर अड़तालीस तक हिंद स्वराज पर जोर दिया था मगर उसको लोगों के द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सका।
Wednesday, June 4, 2008
कम हो रहे है मीडिया घराने
हमें 'एड्स न्यूज़' फ़िल्म जैसी स्टाइल से दिखाना होगा:शैलेश
हमारे सामने रिपोर्टिंग के दौरान भी वहीं समस्या ही आती है जो सेक्स एज्युकेसन के दौरान आने वाली होती है मीडिया से जुड़े होने के नाते हमे ये प्रयास करना चाहिए कि हम इसको इसे लिखे,स्टोरी मैं दिखाएँ की लोग उसे देखने पर मजबूर हो जाए हमारे लिए एक चुनौती ये भी है कि हम सेक्स एज्युकेसन एक बार ही देने जाते है मगर मीडिया से जुड़े होने के खातिर आपको उसे कई बार दिखाना है, बार-बार दिखाना है और पत्रिकाओ को भी उसे हर बार एक नए ढंग से लिखना अपने आप में बड़ी चुनौती है जो वास्तव रोचक भी होना चाहिए. हमे हर रोज ये तरीके ढूँढ़ने होते है कि कैसे एड्स को उस आदमी को बताया जाय जिसकी इसे जानने मैं कोई दिलचस्पी नहीं है. ऐसे में क्या किया जाय कि उसे देखे और ज्यादा उसके बरे मैं जानना चाहे आम आदमी अक्सर अपनी निगाहें महानायकों पर टिकाए रहता है उसे ही देखना चाहता है पढ़ना चाहता है क्योकि उसके साथ उसके सपने जुड़े होते है वहीं दूसरी तरफ़ एच आई वी से पीड़ित कोई महानायक नहीं होता है तो फ़िर आप उसे कैसे दिखायंगे मीडिया मैं बस आज हाइवे के किनारे और रोड पर चलने वाले ड्राइवरों की समस्या को ही फ्लेश किया जा रहा है।
हमारे समाज में सेक्स वर्कर्स की मौजूदगी आज की बात नहीं है ये तो हमारे समाज में आदि कल से चली आ रही परम्परा है पहले जो काम देवदासियाँ करती थी वे ही अब सेक्स वर्कर कर रही है हमारे पास एड्स पर इसके अलावा दुसरे दिन दिकहने के लिए ने स्टोरी क्या है यहं हमारे क्म्युनिकेसन के स्किल का बा रोल होता है अखबर के पत्रकार से लेकर इलेक्ट्रोनिक चैनल जैसे मीडिया के लिए भी कि कैसे एड्स की विराटता को उसी परिद्रस्य के साथ पेश किया जा सके. यहाँ विराटता से आशय एड्स की महानता से नहीं वरन उसके व्यापक दुष्प्रभाव से है एक पत्रकार को चाहिए कि वह एड्स की उस भयावहता को उसके मूल स्वरूप में देखकर लोगो को भी दिखा सके और यही अपने आप में बिग स्टोरी होगी किसी प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार के लिए भी.हमे एड्स को अच्छे से रिपोर्ट करने के लिए सूत्र तलाशने होंगे जो एक दुसरे से दूर दूर बिखरे हुए है और उन्हें लोगों को बतातना होगा और आंकडों से कुछ नहीं होता आपको मुद्दे को भावात्मक मोड़ देना ही होगा क्योंकि लोगों को आंकडों पर तरस नहीं आता है इसी लिए अन्कदों पर अक्सर लोगों का ध्यान जाता ही नहीं है लोगों को एड्स के विषय में बताने के दो तरीके है पहला उनको डराकर या फ़िर मानवीय त्रासदी के भावनात्मक पहलू को सामने लाकर. एड्स की खबरों का हाल क्या होता है ये तब पता चलता है जब आपकी इस न्यूज़ पर आपका चैनल बदला दिया जाता है एक मिडिया संस्थान होने के नाते हम भी एड्स पर काम करना चाहते है ये महान कार्य करना चाहते है मगर इस महान कार्य को कई देखे तो ना, और जब कोई इस काम को कई देखें नहीं तो फ़िर चैनल होने के नाते में उसे क्यों दिखाऊँ? असल में बात ये नहीं है कि कोई एड्स पर कुछ भी देखना ही नहीं चाहता है सच तो यही है कि हमें असल में एड्स को दिखाना ही नहीं आता है. एड्स के समबन्ध में हमारी कम्युनिकेसन स्किल्स ही सबसे बड़ी समस्या है और यही आने वाले पत्रकारों के साथ साथ उन सभी तमाम भावी पत्रकारों के लिए भी चुनौती है कि एड्स पर किस प्रकार से लिखा जाय जिसे लोग पढे और अपने जीवन में उतारने पर राजी हो जाए।
उन्होंने अपने एक अनुभव के अधर पर बताया कि उनके चैनल के एक व्यक्ति को पिछले दो सालों से एड्स पर डाक्यूमेट्री पर पुरस्कार मिल रहा है मगर उसमे क्या है ये उनको याद नहीं है कि उसमे क्या है मगर वहीं उनके चैनल के एक रिपोर्टर के द्वारा आजमगढ़ के एक सामान्य सी लगने वाली स्टोरी अब तक मानस पटल पर छाप बांये हुए है हम न मर्यादाओं से बाहर निकल सकते है मगर हम इसके विषय में मौन रखना उचित नहीं समझते है और ऐसा मानते है कि हम उसे समाज के सामने रखने से बाज़ भी नहीं आयेंगे तो फ़िर इसके लिए हमें ही अपना तरीका विकसित करना होगा जो अपने अन्दर से आने की वजह से मौलिकता लए हुए होगा। आज भी एड्स जैसे गंभीर विषय पर कह्बरों के साथ साथ अच्छे रिपोर्टरों की कमी है जो उन बेबस लोगों को अलग नजरिये से देखा सके और उनकी पीड़ा को अन्दर से महसूस कर सके। हमे कोई 'फिल्मी' तरीका इजाद करना होगा जैसे हर फ़िल्म में लगभग एक सी कहानी होती है कलाकारों का रोल एक सा होता है फ़िर भी न सिर्फ़ फिल्में बनती है बल्कि कई सारी फिल्में चलती भी है और सुपर हीट भी हो जाती है ठीक इसी तरह एड्स पर भी हमें कोई युक्ति इजाद करनी होगी जिसे हर स्टोरी न सिर्फ़ देखी जाय वरन पसंद भी की जाए .
पिछले दिनों आज तक चैनल के एक्जीक्यूटिव एडिटर श्री शैलेश जी भोपाल के पलाश होटल में मध्य प्रदेश एड्स कंट्रोल सोसायटी के द्वारा मीडिया स्टूडेंट्स के लिए आयोजित एक कार्यशाला में आए थे. उन्होंने वहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों से रूबरू हुए और इसी दौरान मुझे भी उनसे इस सम्बन्ध में कुछ समझने का अवसर मिला यहाँ प्रस्तुत है उनके मूल भाषण के कुछ अंश . उम्मीद है कि आपको पसंद आयेंगे . अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराये.
Sunday, June 1, 2008
ये क्या हो रहा है ................
आज शहर के रविन्द्र भवन स्थित स्वराज भवन में मीडिया के मित्र के द्वारा एक गोलमेज संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विषय था भोपाल में मीडिया वार किसके हित में ? इस गोलमेज परिचर्चा में भोपाल शहर के कई जाने-माने मीडिया कर्मी और मीडिया के विश्लेषकों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का आरंभ युवा विचारों के साथ हुआ इस दौर में स्टार चैनल के भोपाल में विशेष संवाददाता बृजेश राजपूत ने कहा कि इन दिनों भोपाल के मीडिया के में बड़ी आग है वैसे तो भोपाल बड़ा ठंडा ठंडा कूलस्पॉट है होर्डिंग्स से लेकर सभी घरों तक इसकी तपीश है । नए अखबार आए है और कुछ नए आने वाले है इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी कई नए केमरों के टेग दिखाई देने लगे है अब पत्रकारों को बेहतर पेकेज मिल रहा है जिन लोगों से कुछ बन नही रहा था उनको मजा आरहा अब
इसके आगे के वक्ताओं के विचार कल क पोस्ट में पढे ...........
Saturday, May 31, 2008
किसी को किसी प्रकार की असुविधा या जानकारी चाहिए हो तो आप इस ब्लॉग पर उसे बाँट सकते है। उम्मीद है आप इस नंबर ९९८१७३९१०८ की कुछ मदद करने का प्रयास हम जरूर करेंगे।
आपका दोस्त
विकल्प
अब भोपाल के मीडिया की चर्चा गोलमेज पर
हमे बस एड्स पर लिखना आना चाहिये
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागी ।
मुद्दा गंभीर है ..........दीपक,नम्रता,दीपा और सोनी वक्तव्य सुनते हुए ।
कार्यशाला के दौरान मंचासीन अतिथि ।
बड़े भाई भी आए कुछ जानने के लिए ... एम जे के सीनियर।
यूनिसेफ के नए अधिकारी ।
आज तक के शैलेश जी अपने विचार रखते हुए ।
एड्स जैसी भीषण समस्या पर अगर पढ़ा नही जाता है, इसका मूल कारण यह नहीं है कि लोगों को इसकी चिंता नहीं है। इसका कारण यह है हम आज तक भी इसको वास्तविक रूप से वैसा पेश नहीं कर पाए है। सच यही है कि हमे मीडिया आर्गनाइजेसन की रिक्वायरमेंट के अनुरूप एड्स को प्रेसेटकरना नहीं आया है। समस्या यह नही है कि लोग एड्स पर देखना, सुनना या पढ़ना नहीं चाहते है, हम लोगों के सामने समस्या यह है कि हम एड्स पर ऐसा लिख ही नहीं पा रहे है जिसे लोग पढे ।
यह विचार आज तक न्यूज़ चेनल के एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर श्री शैलेश जी ने होटल पलाश रेसीडेसी में मध्य प्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी द्वारा मीडिया के छात्रों के लिए एड्स पर एक कार्यशाला में व्यक्त किए। जिसमें मीडिया से जुड़े विषयों पर कई मीडिया विशेषज्ञों ने विद्यार्थियों को बारीकियाँ सिखाई। इस कार्यशाला में शैलेश जी के अलावा द वीक के भोपाल ब्यूरो प्रमुख दीपक तिवारी , हिंदू के विशेस संवाददाता ललित शास्त्री और परियोजना संचालक मध्य प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी डाक्टर ब्रजेन्द्र मिश्रा भोपाल मेडिकल कालेज, डाक्टर सक्सेना, डाक्टर सोमा बोस भी मौजूद थे।
Friday, May 30, 2008
अमेरिका की तरह यहाँ भी आएगा, डाक्युमेंटरी का दौर
अमेरिका का मीडिया अमेरिकस फोकस है जिसमे कभी-कभी तो बड़ी बड़ी इंटरनेशनल न्यूज़ को भी कवरेज नही मिल पाता है। अमेरिका में अब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक का कवरेज कम होता जा रहा है और वहां के लोगों को भी इसमे ज्यादा इन्स्ट्रेस्ट अब नहीं रहा है मगर हमारे देश भारत मे हाल फिलहाल में पेपर, टीवी और वेब तीनो माध्यमों की स्थिति पीक पर है। जिससे अभी भी लोगों की रूचि बरकरार है वहीं अमेरिका में इसका कोई फायदा नहीं हो रहा है क्योंकि अब लोग इससे बोर होते जा रहे है। हमारे देश में भी विकास के मुद्दों को लेकर कुछ करने के लिए डाक्युमेंटरी एक अहम् औजार हो सकती है। यह कहना है श्रीरुपा राय का जो, अमेरियन सेंटर के साथ जुड़ कर इंडियन मीडिया का एलालिसिस कर रही है। वे पिछले दिनों पत्रकारिता विभागे के छात्रों से रूबरू हुयी और नई पीढ़ी के युवाओ के सपनो के साथ अपने अनुभवों को भी बांटा ।
श्रीरुपा ने बताया कि मीडिया पर नियंत्रण के लिए अमेरिका में एफसीसी है ब्रिटेन में भी रेगुलेसन कोड है यू एस ऐ में इनडीपेंडेंट रिव्यू कमीसन है वह संतुष्ट होने पर ही किसी कन्टेन्ट को एयर की अनुमति मिलती है मगर भारत में मीडिया पर इतना ज्यादा सेंसर नहीं है इसी वजह से मीडिया में काम करने की संभावनाये है।
अपने रिसर्चे के लिए दिल्ली को ही चयन किया ये पूंछे जाने पा उन्होंने बताया कि मैंने दिल्ली को इसलिए चुना है क्योंकि मुम्बई में तो ज्यादातर के मार्केटिंग के ऑफिस और टी आर पी वहां है मुख्यतः सभी चेनलों का डीपार्टमेंट दिल्ली में ही फोकस है जिनका एडिटोरियल तो दिल्ली से ही संचालित होती है। वहां रह कर इनका अध्यन करना उपयुक्त होता है ।
अमेरिका में डाक्युमेंटरी को मेन स्ट्रीम मीडिया के तौर पर देखा जाता है वहां डाक्युमेंटरी से उन सब मुद्दों को दिखाया जाता है जो मीडिया से परे छुट जाते है मगर हमारे देश में अभी ऐसा नहीं हो पाया है अमेरिका में डाक्युमेंटरी डवलपमेंट को फोकस होती है जिसमे हरिकेन जैसे कई डिजास्टर मेनेजमेंट ।
उन्होंने यह भी कहा कि वास्तव में डाक्युमेंटरी के क्षेत्र में काफी समभावनाये है हमारी पत्रकारिता ने अभी तक इसको कास्टिंग काउच, तहलका और स्टिंग ओपरेशन तक ही सीमित रखा है कुछ लोगों ने इस विधा का अवार्ड जीतने के लिए भी प्रयोग किया है मगर व्यापक समभावनाये अभी भी बाकि है अगर उस पर कम शुरू होने पर जल्द ही डाक्युमेंटरी हमारी में स्ट्रीम मीडिया का अहम् हिस्सा होगी ।
Sunday, May 18, 2008
अब गुरु घंटाल भी लिखेगा ब्लॉग
एक ताजा समाचार कहे या ब्रेकिंग न्यूज़ कहे डिपार्टमेंट के छात्र और ओरकुट पर आवारा मसीहा के नाम से फेम हमारे शिवम् भइया भी अपनी जोंडिस की बीमारी से इतने इम्प्रेस हुए है की उन्होंने ब्लॉग लिखने का फ़ैसला किया है उनके ब्लॉग को आप गुरु घंटाल के नाम से पर है है इसका लिंक विकल्प
फीडबैक पर भी है ।
Sunday, May 4, 2008
एक ख़त आया तो है
आपका प्यार कम हो गया है शायद
जनाब मैं किसी नए उपन्यास की बात नहीं कर रहा हूँ
जो बाजार में बिकने के लिए आया है बल्कि मैं आपकी ही बात कर रहा हूँ
आपका क्या ख़याल है मैं तो लिखे ही जा रहा हूँ और एक आप है की कोई परवाह ही नही है अरे भई आपको भी कुछ ना कुछ तो लगता होगा अच्छा बुरा या फ़िर गुस्सा कभी शिकायत करने का जी तो करता होगा
हाँ होता है न तो फ़िर बेधड़क होकर बोलो कमेंट्स करो लैटर लिखो बात करो मेल करो इससे भी बुरी भाषा में कहू तो तो उपदेश दो बकवास करो कुछ न कुछ तो करो आफ्टर आल आप एक इस्न्सन तो है ना
अपने सजीव होने का प्रमाण दो
अपना फीडबैक दो
Monday, April 28, 2008
आज हम ऊपर आसमाँ निचे
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) ने सोमवार को उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में एक नया मुकाम पाया है । भारत का उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी9 के साथ 10 उपग्रहों के साथ सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया गया। इनमे आठ अन्य देशों के हैं और दो भारत के हैं.लॉन्च किए जाने वाले दस उपग्रहों में भारत का आधुनिक रिमोट सेसिंग उपग्रह शामिल है. इसका अलावा आठ विदेशी नैनो उपग्रहों को भी छोड़ा गया है.
अपने तय समयानुसार यानी भारत में सुबह के नौ बजकर 23 मिनट पर इस यान को प्रक्षेपित कर दिया. इससे पूर्व गत वर्ष अप्रैल में एक रूसी उपग्रह प्रक्षेपण यान से 13 उपग्रहों को छोड़ा गया था लेकिन वह सफल नहीं हो सका था। अब भारत का 230 टन वज़न वाला पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीहकल (पीएसएलवी-सी9) कुल 824 किलो भार लेकर गया है। इस प्रक्षेपण के बाद भारत को न सिर्फ़ विश्व स्तर पर सफलता मिलेगी साथ ही अन्य विकसित देश हमारे साथ समझौता करके हमारी मदद के लिए आगे आयेंगे। साथ ही हमारी इस सफलता के बाद कई विकासशील देश अपने सेटेलाइट लॉन्च करने के लिए हमारी मदद लेंगे । जो उन देशों से हमारे रिश्ते सुधरने में कारगर साबित होंगें ।
Thursday, April 24, 2008
विकल्प का ये अंक
हर बार की तरह इस बार का विकल्प भी हमने आपके लिए यहाँ रखा है । आप इसको यहाँ देखा सकते है । आप से निवेदन है की अपनी प्रतिक्रिया से हमे जरुर अवगत करायें ।
Tuesday, April 22, 2008
Sunday, April 20, 2008
विकल्प का इस बार का अंक
कृपया आप इस लिंक को देखने का कष्ट करें ।
http://scam24.blogspot.com/2008/04/blog-post_20.html