Saturday, May 31, 2008
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आपका दोस्त
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अब भोपाल के मीडिया की चर्चा गोलमेज पर
हमे बस एड्स पर लिखना आना चाहिये
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागी ।
मुद्दा गंभीर है ..........दीपक,नम्रता,दीपा और सोनी वक्तव्य सुनते हुए ।
कार्यशाला के दौरान मंचासीन अतिथि ।
बड़े भाई भी आए कुछ जानने के लिए ... एम जे के सीनियर।
यूनिसेफ के नए अधिकारी ।
आज तक के शैलेश जी अपने विचार रखते हुए ।
एड्स जैसी भीषण समस्या पर अगर पढ़ा नही जाता है, इसका मूल कारण यह नहीं है कि लोगों को इसकी चिंता नहीं है। इसका कारण यह है हम आज तक भी इसको वास्तविक रूप से वैसा पेश नहीं कर पाए है। सच यही है कि हमे मीडिया आर्गनाइजेसन की रिक्वायरमेंट के अनुरूप एड्स को प्रेसेटकरना नहीं आया है। समस्या यह नही है कि लोग एड्स पर देखना, सुनना या पढ़ना नहीं चाहते है, हम लोगों के सामने समस्या यह है कि हम एड्स पर ऐसा लिख ही नहीं पा रहे है जिसे लोग पढे ।
यह विचार आज तक न्यूज़ चेनल के एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर श्री शैलेश जी ने होटल पलाश रेसीडेसी में मध्य प्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी द्वारा मीडिया के छात्रों के लिए एड्स पर एक कार्यशाला में व्यक्त किए। जिसमें मीडिया से जुड़े विषयों पर कई मीडिया विशेषज्ञों ने विद्यार्थियों को बारीकियाँ सिखाई। इस कार्यशाला में शैलेश जी के अलावा द वीक के भोपाल ब्यूरो प्रमुख दीपक तिवारी , हिंदू के विशेस संवाददाता ललित शास्त्री और परियोजना संचालक मध्य प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी डाक्टर ब्रजेन्द्र मिश्रा भोपाल मेडिकल कालेज, डाक्टर सक्सेना, डाक्टर सोमा बोस भी मौजूद थे।
Friday, May 30, 2008
अमेरिका की तरह यहाँ भी आएगा, डाक्युमेंटरी का दौर
अमेरिका का मीडिया अमेरिकस फोकस है जिसमे कभी-कभी तो बड़ी बड़ी इंटरनेशनल न्यूज़ को भी कवरेज नही मिल पाता है। अमेरिका में अब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक का कवरेज कम होता जा रहा है और वहां के लोगों को भी इसमे ज्यादा इन्स्ट्रेस्ट अब नहीं रहा है मगर हमारे देश भारत मे हाल फिलहाल में पेपर, टीवी और वेब तीनो माध्यमों की स्थिति पीक पर है। जिससे अभी भी लोगों की रूचि बरकरार है वहीं अमेरिका में इसका कोई फायदा नहीं हो रहा है क्योंकि अब लोग इससे बोर होते जा रहे है। हमारे देश में भी विकास के मुद्दों को लेकर कुछ करने के लिए डाक्युमेंटरी एक अहम् औजार हो सकती है। यह कहना है श्रीरुपा राय का जो, अमेरियन सेंटर के साथ जुड़ कर इंडियन मीडिया का एलालिसिस कर रही है। वे पिछले दिनों पत्रकारिता विभागे के छात्रों से रूबरू हुयी और नई पीढ़ी के युवाओ के सपनो के साथ अपने अनुभवों को भी बांटा ।
श्रीरुपा ने बताया कि मीडिया पर नियंत्रण के लिए अमेरिका में एफसीसी है ब्रिटेन में भी रेगुलेसन कोड है यू एस ऐ में इनडीपेंडेंट रिव्यू कमीसन है वह संतुष्ट होने पर ही किसी कन्टेन्ट को एयर की अनुमति मिलती है मगर भारत में मीडिया पर इतना ज्यादा सेंसर नहीं है इसी वजह से मीडिया में काम करने की संभावनाये है।
अपने रिसर्चे के लिए दिल्ली को ही चयन किया ये पूंछे जाने पा उन्होंने बताया कि मैंने दिल्ली को इसलिए चुना है क्योंकि मुम्बई में तो ज्यादातर के मार्केटिंग के ऑफिस और टी आर पी वहां है मुख्यतः सभी चेनलों का डीपार्टमेंट दिल्ली में ही फोकस है जिनका एडिटोरियल तो दिल्ली से ही संचालित होती है। वहां रह कर इनका अध्यन करना उपयुक्त होता है ।
अमेरिका में डाक्युमेंटरी को मेन स्ट्रीम मीडिया के तौर पर देखा जाता है वहां डाक्युमेंटरी से उन सब मुद्दों को दिखाया जाता है जो मीडिया से परे छुट जाते है मगर हमारे देश में अभी ऐसा नहीं हो पाया है अमेरिका में डाक्युमेंटरी डवलपमेंट को फोकस होती है जिसमे हरिकेन जैसे कई डिजास्टर मेनेजमेंट ।
उन्होंने यह भी कहा कि वास्तव में डाक्युमेंटरी के क्षेत्र में काफी समभावनाये है हमारी पत्रकारिता ने अभी तक इसको कास्टिंग काउच, तहलका और स्टिंग ओपरेशन तक ही सीमित रखा है कुछ लोगों ने इस विधा का अवार्ड जीतने के लिए भी प्रयोग किया है मगर व्यापक समभावनाये अभी भी बाकि है अगर उस पर कम शुरू होने पर जल्द ही डाक्युमेंटरी हमारी में स्ट्रीम मीडिया का अहम् हिस्सा होगी ।
Sunday, May 18, 2008
अब गुरु घंटाल भी लिखेगा ब्लॉग
एक ताजा समाचार कहे या ब्रेकिंग न्यूज़ कहे डिपार्टमेंट के छात्र और ओरकुट पर आवारा मसीहा के नाम से फेम हमारे शिवम् भइया भी अपनी जोंडिस की बीमारी से इतने इम्प्रेस हुए है की उन्होंने ब्लॉग लिखने का फ़ैसला किया है उनके ब्लॉग को आप गुरु घंटाल के नाम से पर है है इसका लिंक विकल्प
फीडबैक पर भी है ।
Sunday, May 4, 2008
एक ख़त आया तो है
आपका प्यार कम हो गया है शायद
जनाब मैं किसी नए उपन्यास की बात नहीं कर रहा हूँ
जो बाजार में बिकने के लिए आया है बल्कि मैं आपकी ही बात कर रहा हूँ
आपका क्या ख़याल है मैं तो लिखे ही जा रहा हूँ और एक आप है की कोई परवाह ही नही है अरे भई आपको भी कुछ ना कुछ तो लगता होगा अच्छा बुरा या फ़िर गुस्सा कभी शिकायत करने का जी तो करता होगा
हाँ होता है न तो फ़िर बेधड़क होकर बोलो कमेंट्स करो लैटर लिखो बात करो मेल करो इससे भी बुरी भाषा में कहू तो तो उपदेश दो बकवास करो कुछ न कुछ तो करो आफ्टर आल आप एक इस्न्सन तो है ना
अपने सजीव होने का प्रमाण दो
अपना फीडबैक दो