Thursday, June 5, 2008

पाठकों के प्रति समर्पित होने से सार्थक होंगी बहसें

श्री कुशवाहा जी ने कहा कि अभी हाल ही में मई का महीना ख़त्म हुआ है एक सौ पचास साल पहले स्वतंत्रता का पहला युद्ध लड़ा गया फ़िर उन्नीस सौ सैतालिस मैं दूसरा तथा उन्नीस सौ पिचहत्तर में तीसरा युद्ध लगा गया और अब हमारे यहाँ मीडिया का यद्ध लड़ा जा रहा है अभी पत्रकार जिन हाथों में खेल रहा है और जहाँ वह काम कर रह है उसका मौहोल सही नहीं है हमारा लोकतंत्र बिना पारदर्शिता के नहीं चल सकता है मगर आज भी हमारे समाज में पारदर्शिता नहीं आई है आज अखबारों में लिखा क्या जाता है इसी का नतीजा है कि हम अखबार सिर्फ़ पन्द्रह मिनिट में समाप्त हो जाता है जहाँ प्रिंट मीडिया के पत्रकारों के सामने एक दिक्कत ये भी है कि उसमे इलेक्ट्रोनिक मीडिया की तरह मूड्स नहीं आता है और इतनी बढाती प्रतियोगिता का नतीजा यहीं होना है कि पत्रकारों का फायदा होगा तो दूसरी तरफ़ उनका शोषण भी तो होगा जब तक अखबार अपने पाठकों के प्रति समर्पित नहीं होंगे ऐसी वार्ताओं का कोई फायदा नहीं होने वाला है

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